उत्तराखण्डउधमसिंह नगर

डाॅक्टरों की कमी के चलते रेफर सेंटर बना पंतनगर विश्वविद्यालय

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पंतनगर। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का अस्पताल स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। अस्पताल का नाम जितना बड़ा है, सुविधाएं उतनी ही कम है। प्रतिदिन लगभग 400-450 मरीज अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन चिकित्सक नहीं होने से उन्हें मरहम-पट्टी कर अन्यत्र रेफर कर दिया जाता है। यहां तक कि रेफर करने के लिए डाॅक्टर को ढूंढ़ना पड़ता है। इतना ही नहीं तकनीकी स्टाफ नहीं होने से मेडिकल उपकरण और कार्डियक एंबुलेंस भी शोपीस बनकर रह गए हैं। पंतनगर विवि की स्थापना के समय से ही परिसर में डिस्पेंसरी खोलकर चिकित्सा व्यवस्था शुरू की गई थी।

वर्ष 2015 में अस्थाई रूप से पंजीकृत और वर्तमान में 40 बिस्तरों का बन चुका यह अस्पताल आज भी पंजीकृत नहीं है। आज इस अस्पताल पर पंतनगर के लगभग 22 हजार लोग निर्भर हैं। यहां छह डाॅक्टरों सहित 48 कर्मचारी (9 स्थाई व 39 ठेका कर्मी) कार्यरत थे, फिर भी मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता था। हाल ही में डाॅ. दुर्गेश यादव के छात्रा के यौन शोषण के आरोप में जेल में होने, आई स्पेशलिस्ट डाॅ. इला सिंघल के जाॅब छोडने़ और दंत चिकित्सक डाॅ. पंकज अग्रवाल के लंबी छुट्टी पर होने सहित चिकित्सालय प्रभारी डाॅ. एनएस जादौन सेवानिवृत्त होने से स्थितियां और भी विषम हो गई हैं। वर्तमान में डाॅ. दीपक अग्रवाल व उनकी पत्नी गाइनकोलाॅजिस्ट डाॅ. ऋतु अग्रवाल ही अस्पताल में बचे हैं। वह भी दिन में ओपीडी के बाद रात्रि ड्यूटी नहीं करते। इस दौरान अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को अन्यत्र रेफर के लिए भी डाॅक्टरों को ढूंढ़ना पड़ता है। क्योंकि बिना चिकित्साधिकारी के हस्ताक्षर मरीजों को रेफर नहीं किया जा सकता है।

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चिकित्सालय में गहन चिकित्सा कक्ष, कार्डियक एंबुलेंस, ईसीजी उपकरण, इंसुलिन, मोटराइज्ड इंजेक्टर सहित वेंटिलेटर भी मौजूद है। परंतु तकनीकी स्टाफ के अभाव में वह सब शोपीस बनकर रह गए हैं। मजे की बात है कि मरीजों का एक्सरे पशुओं की एक्सरे मशीन पर किया जाता है। विवि चिकित्सालय को वेंटिलेटर एक पूर्व छात्र ने वर्ष 2014 में डोनेट किया था। 2015 में मुंबई हॉस्पिटल ने विवि चिकित्सालय को तकनीकी स्टाफ की तैनाती करने का एक प्रस्ताव भेजा था, जिसके एवज में उसे 10 रूपये प्रति किलोमीटर की दर पर कार्डियक एंबुलेंस प्रयोग करनी थी। लेकिन विवि प्रशासन ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया। कभी-कभी तो डॉक्टर ओपीडी में मरीजों को देखते रहते हैं और फार्मासिस्ट दवा काउंटर बंद करके चले जाते हैं। दो माह से इमरजेंसी में कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। मरीज को रेफर करने के लिए भी डॉक्टर को बुलाना पड़ता है। इसके बावजूद डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते हैं। कई बार तीमारदारों व डाॅक्टरों में तकरार भी हो चुकी है, इसके बाद भी हालत नहीं सुधर रहे हैं।

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चिकित्सालय में नहीं है कोई सेवा नियमावली

पंतनगरः महंगाई के इस दौर में विवि प्रशासन ने डाॅक्टरों को संविदा पर 48 हजार रूपये प्रतिमाह मानदेय पर नियुक्ति दी है। जिसे काफी विरोध के बाद 56 हजार कर दिया गया। चिकित्सालय में कोई सेवा नियमावली नहीं होने के कारण डॉक्टर चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यभार ग्रहण कर उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। बस बीच-बीच में वेतनमान में प्रोन्नति होती रहती है। इसके अलावा डॉक्टरों से 24 घंटे की ड्यूटी भी कराई जाती है। 

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Daleep Singh Gariya

संपादक - देवभूमि 24