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केंद्रीय राज्य मंत्री ने नैनीताल जिले के 17 गांवों को मालिकाना हक दिलाने के लिए मुख्यमंत्री को भेजा पत्र

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हल्द्वानी। केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री व नैनीताल उधम सिंह नगर संसदीय क्षेत्र से सांसद अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर नैनीताल जिले के अंतर्गत बिंदुखत्ता, दमुआढुंगा समेत 17 गांवों के मालिकाना हक दिए जाने संबंध में वांछित कार्रवाई करने का अनुरोध किया है।

केंद्रीय मंत्री श्री भट्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा है कि जनपद नैनीताल के अंतर्गत लालकुआं तहसील के बिंदुखत्ता ग्राम को राजस्व गांव बनाने को लेकर लंबे समय से की जा रही मांग पूरा करने के लिए शासन को कई बार पत्राचार के माध्यम से अवगत कराया गया है। पूर्व में इस संबंध में वन विभाग को कई बार पत्र लिखे जा चुके हैं जिसके बाद हर प्रभाग से तहसीलदार ऐसे गांव के संबंध में सूची मांगी गई है जिन्हें राजस्व गांव बनाया जाना है। इसमें बिंदुखत्ता व दमुआढ़ूंगा जैसे इलाके भी शामिल है जो कि आरक्षित वन भूमि में बताए गए हैं। इस संबंध में 2004 में एक प्रस्ताव शासन ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जिसे मंत्रालय ने खारिज कर दिया।

इसके बाद मुख्य वन संरक्षक प्रशासन की तरफ से सभी प्रभागो को एक पत्र भेजा गया, जिसमें राजस्व गांव बनाने को लेकर चल रही प्रक्रिया की जानकारी दी गई। नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता, दमुआढुंगा समेत 17 गांव 3622 हेक्टेयर पर राजस्व गांव बनाने की पैरवी की जा रही है।  इस प्रकार उधम सिंह नगर में बग्गा 54 समेत कई गांव और तोक हैं।

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श्री भट्ट ने बताया कि जिन्हें राजस्व गांव बनाया जाना है उनमें बिंदुखत्ता, दमुआ ढुंगा, बग्गा 54, हंसपुर खत्ता,  धुनीखालखत्ता, होरई खत्ता, जौलासालखत्ता, रेखाल खत्ता, पीलापानी खत्ता,  आम डंडा खत्ता, रंजना गोट, गंगापुर गोट, रिगोडांखत्ता, रामपुर  टोगिया, बीड़ा खत्ता समेत कार्बेट टाइगर के आसपास 5  खत्ते, 2 टोगिया गांव 12 मनगांव आजादी से पहले बसे हुए हैं । और सितारगंज में लोका,  गोठा, वनखुईया, फिरोजपुर, बसगढ़,  पीपली, अरविंद नगर में के ढाई नंबर, सात नंबर और झाड़ी नंबर 9 जैसे इलाके शामिल है जो कि आरक्षित बनाए गए हैं।

श्री भट्ट ने बताया है कि रिकॉर्ड में वन भूमि जरूर हो सकती है, लेकिन वास्तविक रूप से यहां पर बिंदुखत्ता, दमुआ ढुंगा समेत सभी स्थानों पर लोग आजादी से पहले से बसे हुए हैं। कुछ लोगों के 70 वर्ष के करीब हो गया है। उपरोक्त गांव में बसे लोगों यहां पर कृषि करते हैं तथा उनके पक्के मकान भी बने हुए हैं। इन स्थानों में बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक व अन्य लोगों के बसे होने के कारण यहां पर सरकार द्वारा बिजली, पानी, हॉस्पिटल, राशन की दुकान समेत मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।

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इसके अलावा क्षेत्र में रहने वाले लोग केंद्र और राज्यों के संसदीय एवं विधानसभा चुनाव में अपना मतदान भी करते हैं। क्योंकि उपरोक्त ग्रामों के लोग  रिकॉर्ड में चाहे मालिक नहीं हो लेकिन प्रत्यक्ष व क्षेत्रों के मालिक हैं । तथा इनकाबेरोकटोक सीमांकित जमीन पर कब्जा है। आज नहीं तो कल जनहित के मध्य नजर रखते हुए लोगों को यह भूमि देनी पड़ेगी, क्योंकि अब यह लोग कहीं भी नहीं जा सकते। इन्होंने अपने पक्के मकान बनाए हैं तथा शौचालय, पानी, नल सबके घरों तक सरकार द्वारा लगाए गए हैं। उपरोक्त विषय को मेरे द्वारा पूर्व में संसद सत्र में भी उठाया गया था उक्त विषय पर मेरे द्वारा पूर्व में आपको पत्र भी प्रेषित किया गया है।

इसके अलावा श्री भट्ट ने बताया कि मेरे द्वारा केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्राचार किया गया है परंतु उनके पत्र के माध्यम से प्रथम बार यह अवगत कराया गया है कि वन ग्रामों को राजस्व गांव में बदलने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाई गई है। जिसकी सूचना राज्य सरकार को यह कहते हुए दी गई है कि यदि राज्य सरकार माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश में बदलाव चाहती है तो वह स्वतंत्र है।

परंतु माननीय उच्च न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय द्वारा इस प्रस्ताव पर विचार करने में असहमति जताई गई थी और इस प्रकार राज्य सरकार द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय से कोई राहत लेने की सूचना नहीं देने के कारण मंत्रालय द्वारा 26 अगस्त 2013 को वन  अधिनियम के दिशा निर्देशों के पैरा 4.14 में निहित प्रावधानों के तहत इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया था।

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लिहाजा दूसरी बार यह अवगत कराया गया है कि उपरोक्त प्रकरण में वांछित कार्यवाही राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही है। जिसका संपादन नियमानुसार राज्य सरकार को ही करना है। श्री भट्ट ने पत्र में लिखा है कि अतः मेरा आग्रह है कि उपरोक्त गांव का मालिकाना हक दिए जाने संबंध में जो भी कार्रवाई राज्य सरकार के अधीन है उस पर यथाशीघ्र कार्रवाई कर केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु मंत्रालय को भेजना आवश्यक है। ताकि सभी गांव को मालिकाना हक दिया जा सके।

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Daleep Singh Gariya

संपादक - देवभूमि 24