आठ साल से विधानसभा के पटल पर नहीं रखी गई वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट

हल्द्वानी। उत्तराखण्ड में कायदे कानूनों की अनदेखी का एक उदाहरण पेश करते हुए रिटायर्ड असिस्टेंट ऑडिट ऑफिसर रमेश चंद्र पाण्डे ने खुलासा किया है कि पिछले आठ साल से वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर नहीं रखी गई हैं। सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर सवाल उठाते हुए उन्होंंने कहा कि ऐसा ऑडिट कराने से क्या फायदा, जिसकी ऑडिट रिपोर्ट आप (विभाग) अपनी जेब में रखे हुए हैं।
श्री पाण्डे ने बताया कि 7 जून 2012 को जारी उत्तराखण्ड लेखा परीक्षा अधिनियम 2012 के नियम 8(3) में निहित प्रावधान के अनुसार निदेशक लेखा की एक संहत लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार करेगा या करायेगा और उसे राज्य विधान सभा के समक्ष रखे जाने के लिए राज्य सरकार को प्रतिवर्ष भेजेगा। इस नियम के तहत निदेशालय द्वारा वर्ष 2012-13 एवं 2013-14 के वार्षिक लेखा परीक्षा प्रतिवेदन सदन के पटल पर पुटअप की जा चुकी है, लेकिन 2014-15 से अद्यतन अवधि की ऑडिट रिपोर्ट अभी तक विधानसभा पटल पर नहीं रखी गई हैं। आडिट निदेशालय के अनुसार वर्ष 2014-15 से 2019-20 की ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखे जाने हेतु आडिट प्रकोष्ठ वित्त विभाग को भेजी गई हैं।
ऑडिट रिपोर्ट सदन के पटल पर रखने में हुई देरी के लिए आडिट निदेशालय और ऑडिट प्रकोष्ठ एक दूसरे पर अंगुली उठाते नजर आ रहे हैं और कोई यह बताने को तैयार नहीं हैं कि इसे विधान सभा के पटल पर पुट -अप करने में अभी और कितना वक्त लगेगा। उन्होंने कहा कि सभी विभागों के ऑडिट में उजागर हुई अनियमित्ता एवं गबन से सम्बन्धित आपत्तियों को संकलित कर हर वर्ष की ऑडिट रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाती तो इसकी समीक्षा होती और इसमें सुधार व नियन्त्रण हेतु ठोस कदम उठाए जाते लेकिन इन्हें सदन के संज्ञान में ही नही लाये जाने से सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस स्थित के चलते जीरो टॉलरेंस के दावों पर उठने वाले सवालों से बचने के लिए सरकार को यह समझना ही होगा कि कायदे कानून की अनदेखी के मामलों में जवाबदेही तय किया जाना कितना जरुरी है। सुझाव दिया कि इस मामले में अपने दायित्वों के निर्वहन में हीलाहवाली करने वालों की जवाबदेही तय करते हुए सरकार सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर ऑडिट रिपोर्ट सदन के पटल पर पुटअप कराना सुनिश्चित करे।








