स्निफर डॉग्स ने जताई मानव गंध, पर धराली का मलबा बना मौत का जाल

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली क्षेत्र में आई भीषण आपदा को एक सप्ताह बीत चुका है, लेकिन मलबे में दबे लोगों की तलाश अब भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। सेना, एसडीआरएफ और प्रशिक्षित स्निफर डॉग्स की मदद से लगातार तलाशी अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन अब तक बहुत कम सफलता हाथ लगी है।
आपदा क्षेत्र में भारी दलदल, विशाल बोल्डर और लाखों टन मलबे के कारण राहत एवं बचाव कार्य के बाद अब सर्च ऑपरेशन अधिक जटिल हो गया है। करीब 30 से 40 फीट गहराई में दबे शवों की संभावनाओं के बावजूद, उन तक पहुंचना भौगोलिक स्थिति और संसाधनों की सीमाओं के चलते बेहद कठिन हो गया है। भारी मशीनें जैसे जेसीबी और पोकलैंड दलदली ज़मीन में नहीं पहुंच पा रहीं, जिस कारण जवानों को हाथ के औज़ारों से मलबा हटाना पड़ रहा है।
सर्च ऑपरेशन के दौरान प्रशिक्षित डॉग्स ने अब तक 10 से अधिक संभावित स्थानों की ओर इशारा किया है, लेकिन जब वहां खुदाई की गई, तो कोई शव नहीं मिला। संभावना जताई जा रही है कि शव या तो बहुत गहराई में दबे हैं या मलबे के बहाव के साथ खिसक गए हैं, जिससे उनका सटीक लोकेशन पहचानना कठिन हो गया है।
उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने सात दिन बाद 42 लोगों के लापता होने की आधिकारिक सूची जारी की है। हालांकि, प्रशासन का मानना है कि यह संख्या आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है क्योंकि अभी कई लोग संपर्क में नहीं हैं।
आपदा में खीरगंगा से आया लाखों टन मलबा धराली बाजार को पूरी तरह निगल गया है।
करीब 65 होटल, 30 से ज्यादा रिज़ॉर्ट और कई दुकानों व होमस्टे अब मलबे के नीचे दबे हैं। 25 से 40 फीट तक मलबा पूरे क्षेत्र पर फैला है, जिससे धराली बाजार की पहचान तक मिट गई है।
सेना, एसडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन की टीमें लगातार दिन-रात संभावित जगहों पर खुदाई कर रही हैं, लेकिन भारी मलबा, अस्थिर भूमि और संसाधनों की बाधा सर्च ऑपरेशन को धीमा कर रही है। अब तक का अनुभव बताता है कि आगे की राह और भी लंबी और कठिन हो सकती है।
