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बारिश के बाद भी भक्तों का सैलाब: चारधाम यात्रा ने तोड़े रिकॉर्ड

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उत्तराखंड की चारधाम यात्रा इस वर्ष कई चुनौतियों के बीच भी नया इतिहास रच गई है। भारी बारिश, भूस्खलन और आपदाओं ने यात्रा मार्गों को कई बार बाधित किया, लेकिन श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और प्रशासन की कड़ी मेहनत के कारण इस बार भी यात्रियों की संख्या पिछले साल के मुकाबले बढ़ी है।

चारधाम यात्रा के अंतिम चरण में प्रवेश कर चुकी है, जिसमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट 22, 23 और 25 नवंबर को बंद किए जाएंगे। इसके साथ ही इस वर्ष की यात्रा का औपचारिक समापन होगा। इस समय तक यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 47 लाख से अधिक हो चुकी है, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है। प्रशासन का अनुमान है कि समापन तक यह संख्या 50 लाख से भी ऊपर पहुंच जाएगी।

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इस साल मानसून ने गढ़वाल मंडल में भारी तबाही मचाई, जिससे यात्रा मार्ग कई बार बंद हुए और यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ा। कई पुल बह गए और रास्ते बंद हो गए। इसके बावजूद श्रद्धालु धैर्य बनाए रखे और जैसे ही मौसम सुधरा, वे पुनः यात्रा पर निकल पड़े। यह दर्शाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी लोगों की आस्था कम नहीं हुई।

सरकार ने यात्रियों की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद हालात का जायजा लिया और सुनिश्चित किया कि वैकल्पिक मार्ग, हेलीकॉप्टर रेस्क्यू और मेडिकल सुविधाएं समय पर उपलब्ध हों। नियमित समीक्षा बैठकें कर सभी विभागों को यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए सतर्क रखा गया। इन प्रयासों की वजह से यात्रा बाधित होने के बाद जल्दी पटरी पर लौट सकी।

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मुख्यमंत्री सचिव बंशीधर तिवारी ने बताया कि सरकार ने 2025 की यात्रा की व्यवस्थाओं को पिछले साल से बेहतर बनाया है। साथ ही 2026 के लिए भी तैयारियां शुरू हो गई हैं, जिनमें सड़कों, संचार और आवास सुविधाओं के बड़े सुधार शामिल हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘ग्रीन चारधाम मिशन’ भी शुरू किया गया है।

चारधाम यात्रा राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। लाखों श्रद्धालुओं के आने से पर्यटन, परिवहन, होटल और स्थानीय व्यापार को बड़ा लाभ मिलता है। इस बार केदारनाथ और बदरीनाथ के होटलों और धर्मशालाओं की बुकिंग महीनों पहले ही भर गई थी। हालांकि बारिश ने स्थानीय निवासियों को कुछ महीनों तक परेशान भी किया। इस प्रकार, 2025 की चारधाम यात्रा न केवल एक आस्था का प्रतीक बनी बल्कि उत्तराखंड सरकार की बेहतर योजना और तत्परता का भी उदाहरण साबित हुई है।

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